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छत्तीसगढ़ी व्यंग्य- जइसे मदारी के बाजा वइसने बेंदरा के नाचा

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बंशी कका आव देखे न ताव झट खुदे नाचे बर धर लेथे. जस-जस बाजा घटकथे तस-तस कका मटकथे. ओखर गोड़-हाथ अउ तन बदन नाच म अटकन-मटकन होवत रहिथे. भोला बबा जुन्नेट मनखे आय लटक-मटक नइ जाने. फेर संगति म सब जायज होथे. ‘जेखर जइसे संग ओखर वइसने रंग’. बबा कई बखत अइसना संगति म दुरिहा ले आनंद लेय बर जानथे. राजसी ठाठ-बाट ल भूला के सादा जीवन जीना पसंद करथे. शांत चित्त दिखथे. बंशी कका रंगीला हे. चारों खुंट शाट मारत रहिथे.

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